चार वर्ण: Difference between revisions
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'''जन्म से या कर्म से''' | '''जन्म से या कर्म से''' | ||
यह समझने के लिए '''गीता ४:५ ले ४:४२''' तक एकसाथ पढ़ना पड़ता है। पुनर्जन्म, कई बीते जन्मों, अवतार के जन्म और कर्म की दिव्यता, धर्म के उत्थान के लिए अवतारका उपदेश | यह समझने के लिए '''गीता ४:५ ले ४:४२''' तक एकसाथ पढ़ना पड़ता है। पुनर्जन्म, कई बीते जन्मों, अवतार के जन्म और कर्म की दिव्यता, धर्म के उत्थान के लिए अवतारका उपदेश है। | ||
'''गीता ४:३४''' में तत्त्वदर्शी महापुरूष से मर्म जानने का उपदेश है। <ref>श्री भूपेद्रनाथ सान्याल, श्रीमद्भगवद्गीता, 2005, गुरूधाम प्रकाशन समिति, भागलपुर बिहार, प्रथम संस्करण, भाग-१ पृ. ३२३ https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=1948 </ref> | '''गीता ४:३४''' में तत्त्वदर्शी महापुरूष से मर्म जानने का उपदेश है। <ref>श्री भूपेद्रनाथ सान्याल, श्रीमद्भगवद्गीता, 2005, गुरूधाम प्रकाशन समिति, भागलपुर बिहार, प्रथम संस्करण, भाग-१ पृ. ३२३ https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=1948 </ref> | ||
== | '''जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था''' सूक्ष्म दृष्टि संपन्न ही जान सकता है। | ||
== संदर्भ == |
Revision as of 11:31, 22 August 2023
चार वर्ण
गीता १८:४१ में भगवान श्रीकृष्ण ने चार वर्णों का नाम बताया - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। चारों वर्णों के धर्मों का वर्णन - गीता १८:४२, गीता १८:४३ और गीता १८:४४ में है।
किसने बनाए
गीता ४:१३ में भगवान श्रीकृष्ण ने चार वर्णों को अपनी सृष्टि बताया। जिसका आधार गुण और कर्म हैं।
व्यवहार
गीता ५:१८ जो इन चारों में सम देखता है वही देखता है। (बाकी को कमजोर दृष्टि या अंधा समझ सकते हैं)
आजकल
यूपी में विशेष रूप से पूर्वांचल में आम व्यवहार में स्वयंबोध कमजोर हो गया है। बहुत कम घरों में गीता मिलती है (१० प्रतिशत से कम)। उसमें भी सब नहीं पढ़ते। इसलिए अज्ञानवश शूद्रों से कठोरता/रूखा का व्यवहार देखा जाता है। इसका राजनीति के लिए प्रयोग होता है, जिससे वैमनस्य बढ़ गया है। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई है।
जन्म से या कर्म से
यह समझने के लिए गीता ४:५ ले ४:४२ तक एकसाथ पढ़ना पड़ता है। पुनर्जन्म, कई बीते जन्मों, अवतार के जन्म और कर्म की दिव्यता, धर्म के उत्थान के लिए अवतारका उपदेश है।
गीता ४:३४ में तत्त्वदर्शी महापुरूष से मर्म जानने का उपदेश है। [1]
जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था सूक्ष्म दृष्टि संपन्न ही जान सकता है।
संदर्भ
- ↑ श्री भूपेद्रनाथ सान्याल, श्रीमद्भगवद्गीता, 2005, गुरूधाम प्रकाशन समिति, भागलपुर बिहार, प्रथम संस्करण, भाग-१ पृ. ३२३ https://www.vvpbooks.com/bookDetail.php?bid=1948